बहुत कम लोग जानते हैं कि जब विश्वनाथ प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब मुलायम सिंह यादव को एनकाउंटर करने का निर्देश उत्तर प्रदेश पुलिस को दे दिया था। इटावा पुलिस के मार्फत मुलायम सिंह यादव को यह खबर लीक हो गई। मुलायम सिंह यादव ने इटावा छोड़ने में एक सेकेण्ड नहीं लगाया। एक साइकिल उठाई और चल दिए। मुलायम सिंह यादव उस समय विधायक थे। 1977 में राम नरेश यादव और फिर बनारसीदास की सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके थे। सहकारिता मंत्री रहे थे, दोनों बार। लेकिन विश्वनाथ प्रताप सिंह उन दिनों बतौर मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश दस्यु उन्मूलन अभियान में लगे थे। विश्वनाथ प्रताप सिंह के पास पुष्ट सूचना थी कि मुलायम सिंह यादव के दस्यु गिरोहों से न सिर्फ सक्रिय संबंध थे। बल्कि डकैती और हत्या में भी वह संलग्न थे। फूलन देवी सहित तमाम डकैतों को मुलायम सिंह न सिर्फ संरक्षण देते थे। कुछ दिन बाद दिल्ली के इंडियन एक्सप्रेस में पहले पेज पर तीन कालम की एक खबर छपी थी जिस में मुलायम सिंह की हिस्ट्री शीट नंबर सहित, उन के खिलाफ हत्या और डकैती के कोई 32 मामलों की डिटेल भी दी गई थी।
बहरहाल मुलायम सिंह यादव को एनकाउंटर में मारने का निर्देश विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1981-1982 में दिया था। मुलायम सिंह यादव ने ज्यों इटावा पुलिस में अपने सूत्र से यह सूचना पाई कि उन के एनकाउंटर की तैयारी है तो उन्होंने इटावा छोड़ने में एक सेकेण्ड की भी देरी नहीं की। भागने के लिए कार, जीप, मोटर साइकिल का सहारा नहीं लिया। एक साइकिल उठाई और गांव-गांव, खेत-खेत होते हुए, किसी न किसी गांव में रात बिताते हुए, चुपचाप दिल्ली पहुंचे, चौधरी चरण सिंह के घर। चौधरी चरण सिंह के पैर पकड़ कर लेट गए। कहा कि मुझे बचा लीजिए। मेरी जान बचा लीजिए। वी पी सिंह ने मेरा एनकाउंटर करवाने के लिए आदेश दे दिया है।
इधर उत्तर प्रदेश पुलिस मुलायम सिंह को रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन और सड़कों पर तलाशी लेती खोज रही थी। खेत और मेड़ के रास्ते, गांव-गांव होते हुए मुलायम इटावा से भाग सकते हैं, किसी ने सोचा ही नहीं था। लेकिन मुलायम ने सोचा था अपने लिए। इस से सेफ पैसेज हो ही नहीं सकता था। अब जब मुलायम सिंह यादव, चौधरी चरण सिंह की शरण में थे तो चौधरी चरण सिंह ने पहला काम यह किया कि मुलायम सिंह यादव को अपनी पार्टी के उत्तर प्रदेश विधान मंडल दल का नेता घोषित कर दिया।
विधान मंडल दल का नेता घोषित होते ही मुलायम सिंह यादव को जो उत्तर प्रदेश पुलिस इनकाउंटर के लिए खोज रही थी, वही पुलिस उन की सुरक्षा में लग गई। तो भी मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में अपने को सुरक्षित नहीं पाते थे। मारे डर के दिल्ली में चौधरी चरण सिंह के घर में ही रहते रहे। जब कभी उत्तर प्रदेश विधान सभा का सत्र होता तब ही वह अपने सुरक्षा कर्मियों के साथ महज हाजिरी देने और विश्वनाथ प्रताप सिंह को लगभग चिढ़ाने के लिए विधान सभा में उपस्थित होते थे। लखनऊ से इटावा नहीं, दिल्ली ही वापस जाते थे। संयोग था कि 28 जून, 1982 को फूलन देवी ने बेहमई गांव में एक साथ 22 क्षत्रिय लोगों की हत्या कर दी। दस्यु उन्मूलन अभियान में ज़ोर-शोर से लगे विश्वनाथ प्रताप सिंह को इस्तीफ़ा देना पड़ा। विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार गई तो मुलायम सिंह यादव की जान में जान आई। चैन की सांस ली मुलायम ने। लेकिन मुलायम और विश्वनाथ प्रताप सिंह की आपसी दुश्मनी खत्म नहीं हुई कभी। मुलायम ने बाद में विश्वनाथ प्रताप सिंह के डइया ट्रस्ट का मामला बड़े ज़ोर-शोर से उठाया।