“समाज” मनुष्य का समूह में पारस्परिक सहयोग के सांझे उद्देश्य के संग भाई चारे की भावना को शांती पूर्ण वातावरण में रीति-नीति के संग इच्छा से संगठित होना । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है क्यो कि वह अकेला जीवन यापन नहीं कर सकता समाज के बगैर उसके जीवन में कोई महत्व नहीं है क्यो कि समाज एक प्राकर्तिक संस्था है मनुष्य जो कुछ भी बनना या हासिल करना चाहता हैं समाज में रहकर उसके वातावरण में हीं हासिल कर सकता है । यदि यह कहा जाए कि मनुष्य जाति की सुरक्षा ओर विकास की नींव हीं समाज है तो इसमें कोई दो राय नहीं । समाज की परिभाषा अलग-अलग लेखकों द्वारा अलग-अलग समय पर अपनी विचारधारा से परिभाषित किया
कुछ लेखकों की परिभाषित परिभाषाएं नीचे लिख रहा हूँ
डॉ जेंक्स के अनुसार, मनुष्य के मित्रता पूरन या कम से कम शांतिपूर्ण संबंधों का नाम समाज है। प्रसिद्ध विद्वान मैकाईवर के अनुसार, “मनुष्य के आपसी स्वैच्छिक संबंधो का नाम समाज है। समनर और कैलर के अनुसार, ‘समाज उन लोगों का एक समूह है जो आजीविका के लिए एक साथ रहते हैं और मानव जाति की स्थिरता के लिए एक दुसरे के साथ मिल कर रहते हैं?
प्लेटो के अनुसार, समाज व्यक्ति का स्पष्ट रूप है।
गिडिंग के अनुसार, समाज ऐसे लोगों का समूह है जो सामाजिक कल्याण के उद्देश्यों की पूर्ति का समर्थन करते हैं। लीकांक के अनुसार, समाज मानव के सभी प्रकार के संबंधों और कई सामूहिक गतिविधियों का अभास करता है।
समाज की विशेषता
लोगों के समूह :- लोगों के समूह से समाज बनता है बीना समूह के समाज का कोई महत्व ओर अस्तित्व नहीं है मनुष्य का स्वभाव समाजिक है स्वभाव के संग उसकी हसरतें एवं आवश्यकताएं इतनी बढ गई है की वह अपने अकेले दम पर पूरा नही कर सकता इसीलिए उसका स्वभाव उसे प्रेरित करता की वह समाज में रहें।
पारस्परिक सहयोग :- अगर लोगों के समूह में आपसी सहयोग आपस में संबध नहीं तब समूह समाज का निर्माण नहीं कर णसकता
समाज में रहने वाले अलग-अलग जाति ओर धर्म के हो उनमें आपसी एकता ओर सहयोग होना चाहिए ।
सांझे उद्देश्य :- किसी एकल मनुष्य या वर्ग का उद्देश्य पुरा करनें के लिए समाज नहीं बनता समूह के सभी लोगों का उद्देश्य एक नहीं हो सकता पर आवश्यकताएं एक हो सकती हैं यहीं आवश्यकताएं उद्देश्य बनती हैं
भाईचारे की भावना :- समाज में सभी धर्म ओर वर्ग के लोगों होते हैं अगर आपस में सदभावना भाईचारा की भावना नहीं होगी
तब समाज का निर्माण नहीं हो सकता है
अगर हर मनुष्य में यह भावना नहीं होगी तो वह निजी सवाथ॔ के लिए समाजिक हित को नष्ट कर देगा । इस लिए हर मनुष्य में यह भावना होनी चाहिये ।
शांतिपूर्ण वातावरण :- भाईचारे की भावना के संग शांतिपूर्ण वातावरण होना अति आवश्यक है समाज के उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए ।
रीति नीति :- किसी भी समाज को संयमित संगठिति रखने के लिए रीति-नीति आवश्यक है
सवइच्छा :- सवइचछा से कोई भी रीति नीति का पालन करते हुए समाज का भागीदार बन सकता है ।
संगठित संगठन:- सभी कोई किसी भी प्रकार से संगठन में शामिल होने पर समाज बनता है केवल भीड़ को समाज नहीं कह सकते । समाज का उच्च विशेषता इसका संगठन ।
नवीन पूगलीया
सीडीए 11
7003308383