कश्मीर में आतंक का साया 1987 से 2020,अभी तक सातवीं कडी

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नन्द किशोर जोशी

कारगील युद्ध पश्चात चुनाव में 2000 में भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक बार फिर 17 दलों की मिली जुली सरकार बनी कैंद्र में. इस बार के कार्यकाल में अटल बिहारी वाजपेयी ने भरसक प्रयास  किया पाकिस्तान संग दोस्ताना रिश्ता कायम करने का .पाकिस्तान में उस समय परवेज मुशर्रफ की सैन्य सरकार सत्ता में काबिज होगयी थी.

अतः वाजपेयी ने मुशर्रफ को न्यौता भेजा भारत आकर वार्ता करने का.मुशर्रफ ने भारत के न्यौते को स्वीकार किया.दोनों देशों के बीच बडी उच्स्तरीय वार्ता आगरा में आयोजित हुई. इस आगरा सम्मेलन से लेकर भारत को बडी उम्मीद थी कि प्यार की नगरी आगरा में मुशर्रफ
में कुछ भारत के प्रति उदार रवैया आयेगा और मुशर्रफ दोनों देशों के बीच एक समझौता पर दस्तखत करेंगे, इससे कश्मीर समस्या सब दिन के लिए खत्म होजायेगी.

मुशर्रफ इस सम्मेलन में पत्नी संग आये थे. ताजमहल का दीदार करने पत्नी संग पहुंचे. वहाँ कुछ देर रुके और फोटोज भी खिंचवाई. प्रसिद्ध आगरा सम्मेलन जिससे भारत को कश्मीर समस्या के अंत के लिए बडी उम्मीद थी, मुशर्रफ के अडियल रवैये के चलते परवान नहीं चढ सकी और मुशर्रफ पाकिस्तान लौट गये खाली हाथ.

वाजपेयी को भी बडी मायूसी हाथ लगी कशमीर समस्या को लेकर.इस सम्मेलन पर सारी दुनिया की नजर थी.दुनिया भर के
पत्रकार लोगों का जमावड़ा उस समय आगरा में लगा था,लोग कश्मीर समस्या के हल की बात मीडिया के माध्यम से पल पल की
खबर लेरहे थे.अंत में भारत की शांति प्रिय जनता को मायूसी हाथ लगी आगरा सम्मेलन के फेल होने से.क्रमशः

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