पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने ईरान में भारतीय राजदूत रहते हुए खुफिया एजेंसी रॉ के ऑपरेशंस को नुकसान पहुंचाया था। ये आरोप है कुछ पूर्व रॉ अधिकारियों का, और अब उन्हें उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी पूरे मामले की सच्चाई तक पहुंचेंगे।
अगस्त २०१७ में प्रधानमंत्री मोदी से उन अधिकारियों ने मुलाकात भी की जो तेहरान में अंसारी के कार्यकाल के दौरान वहीं तैनात थे। ये साल १९९०-९२ की बातें हैं। शिकायतकर्ता अधिकारियों ने प्रधानमंत्री से चिट्ठी लिखकर दावा किया कि जब अंसारी तेहरान में थे तब वो भारत के हितों की रक्षा नहीं कर सके, साथ ही ईरानी सरकार और उसकी खुफिया एजेंसी SAVAK से सहयोग करके रॉ के ऑपरेशन्स को नुकसान पहुंचाया।
शिकायतकर्ताओं की मानें तो ऐसे चार मामले हुए जब भारतीय दूतावास के अधिकारियों और कूटनीतिज्ञों का SAVAK ने अपहरण करवाए और अंसारी राष्ट्रहित साधने में असफल रहे। तत्कालीन अधिकारियों में से एक एनके सूद ने द संडे गार्जियन से बातचीत में बताया कि अंसारी ने ईरान में रॉ के ठिकानों को बंद करने तक की सिफारिशें की थीं।
आपको बता दें कि SAVAK को आधिकारिक तौर पर १९७९ में खत्म करके नया संगठन बनाया गया था लेकिन आज भी दुनिया भर की खुफिया एजेंसियां ईरानी खुफिया एजेंसी को SAVAK नाम से ही पुकारती हैं।
मई १९९१ में एक भारतीय अधिकारी संदीप कपूर को तेहरान हवाई अड्डे से SAVAK ने किडनैप कर लिया था। अंसारी को इस बाबत बताया गया तो उन्होंने कपूर की खोजबीन करवाने के बजाय भारतीय विदेश मंत्रालय को खुफिया रिपोर्ट भेजी कि कपूर गुम हो गए हैं और ईरान में उनकी गतिविधियां संदिग्ध थीं। अंसारी ने रिपोर्ट में लिखवाया कि कपूर के किसी स्थानीय महिला से संबंध भी थे। आरोप है कि अंसारी ने जानबूझकर रिपोर्ट में नहीं लिखवाया कि इस अपहरण के पीछे रॉ ने SAVAK का हाथ बताया है। तीन दिन बाद भारतीय दूतावास को की गई एक अनजान कॉल से पता चला कि कपूर किसी सड़क किनारे पड़े हैं। उन्हें नशा दिया गया था जिसका असर सालों तक कपूर पर रहा। रॉ की सलाह थी कि ईरानी विदेश मंत्रालय के सामने इस मामले को उठाया जाए पर अंसारी शांत रहे।
अगस्त १९९१ में रॉ की नजर उन कश्मीरी युवाआें पर थी जो ईरान में हथियारों की ट्रेनिंग लेने आते थे। रॉ के नए स्टेशन चीफ ने रॉ के पुराने लाेगों की सलाह के खिलाफ जाते हुए अंसारी के सामने इस ऑपरेशन का खुलासा कर दिया। सूद बताते हैं कि अंसारी ने डीबी माथुर नाम के उस अधिकारी का नाम ईरानी विदेश मंत्रालय तक पहुंचा दिया जिनकी निगरानी में ऑपरेशन हो रहा था। SAVAK को जैसे ही माथुर का नाम पता चला वो उठवा लिए गए। अंसारी ने इस मामले में कोई भी ठोस कार्रवाई नहीं की। यहां तक कि दिल्ली को भी नहीं बताया गया कि इस गुमशुदगी में SAVAK का हाथ है। दूसरे दिन अटल बिहारी वाजपेयी को वाकये की खबर मिली जिसे उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव तक पहुंचाया। इसके बाद इविन जेल से माथुर रिहा हुए। हालांकि माथुर को ७२ घंटों के भीतर ईरान छोड देने की चेतावनी मिल गई थी। भारतीय दूतावास में माथुर ने खुलासा किया कि SAVAK को पहले से एनके सूद और स्टेशन चीफ की पहचान थी।
पूर्व उपराष्ट्रपति के दफ्तर से इन आरोपों पर प्रतिक्रिया लेने की कोशिश बेकार गई क्योंकि कोई भी भेजे गए ई-मेल का जवाब नहीं दे रहा था।
एनके सूद एक और घटना याद करते हैं जब भारतीय राजदूतावास पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड मोहम्मद उमर को SAVAK उठाकर तीन घंटे बाद मुक्त करती है। अंसारी को जब इस बारे में बताया गया तो उन्होंने रॉ स्टेशन चीफ से पड़ताल के लिए कहा क्योंकि उन्हें लगा कि गार्ड को SAVAK ने अपनी ओर मिला लिया है। रॉ ने उसे मासूम करार दिया लेकिन अंसारी ने इस सिफारिश के साथ उसे भारत भेज दिया कि भविष्य में गार्ड को विदेशी ट्रांसफर ना मिलें।
कई और घटनाओं को उस शिकायती खत में दर्ज कराया गया है जो प्रधानमंत्री मोदी को भेजा गया है। इसमें तेहरान स्थित पाकिस्तानी राजदूत से अंसारी की लंबी मुलाकातों का भी जिक्र है जिन्हें कभी भारतीय विदेश मंत्रालय के सामने नहीं लाया गया। सूद ने बताया कि जब अंसारी का ईरान से तबादला हुआ तो भारतीय दूतावास में खुशियां मनाई गईं।