नयीदिल्ली, वाशिंगटन, भारत चीन सीमा विवाद पर अब अमेरिका काफी सक्रिय होगया है. आजकल यूरोप से अमेरिका अपने तैनात किये सैनिकों को एशिया खासकर चीन के आसपास तैनात करना चाहता है.
ऐसे में अमेरिका के मित्र देश जापान और दक्षिण कोरिया उसका साथ देने के लिए हमेशा तैयार ही रहते हैं. अमेरिका के इन दो मित्रों की चीन से बहुत पुरानी रंजिश है. इनका हमेशा से चीन के साथ 36 का आँकडा रहा है.
अमेरिका के हिसाब से एक और खास बात यह भी है कि इसके सैनिक विश्व के आधे से ज्यादा देशों में और समुद्री क्षेत्रों में वर्षों से विराजमान हैं. ऐसे में अमेरिका को हाल का भारत चीन संघर्ष काफी पसंद आया , कई लिहाज से.
एकतो यूरोप समेत कई देशों में अमेरिका अगर सैनिकों की कटौती करता है, उसको कोई फर्क नहीं पडेगा. वह इसलिए कि आज की तारीख में वहाँ अमेरिका की सैन्य संख्या जरूरत से कहीं ज्यादा है.
अमेरिका आराम से उन सरप्लस सैनिकों को दक्षिण चीन सागर, हिंद महासागर क्षेत्र में ड्यूटी में लगासकता है. इधर उनको रखकर चीन को भी धमका सकता है कि हम तेरी छाती पर आकर बैठ गये हैं. उसे ब्यापार के मामले में लाल आँख भी दिखा सकता है और अपनी ब्यापारी शर्तों को मनवाने की कोशिश कर सकता है.
अमेरिका का भारत से भी स्वार्थ जुडा हुआ है. वह भारत को कहता आया है कि हम तुम्हारे साथ हैं, चीन से घबराने की जरूरत नहीं है. अमेरिका कहेगा भारत को कि मैं तेरे पास तेरे साथ यहीं हिंद महासागर में खडा हूँ, दक्षिण चीन सागर में खडा हूँ.
भारत को जोरदेकर कहेगा कि तुम मेरे से आधुनिकतम शस्त्र खरीदो और चीन को पटकनी दो. इससे अमेरिका को कई फायदे हैं , एक तो उसके साथ होड में बढते चीन को वो लगाम लगाना चाहता है, दूसरा वो भारत को अस्त्र शस्त्र बेचकर शस्त्र कंपनियों को खुश करना चाहता है. इन कंपनियों को खुश करने से वे ट्रंप को आगामी चुनाव में मोटाचंदा देंगे. इस तरह अमेरिका भारत चीन संघर्ष में अपनी टाँग फँसाकर अनेक अनेक लाभ लेना
चाहता है.