अखबारों पर घनघोर संकट के बादल छाये ; आजकल डिजिटल न्यूज जमाना

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नन्द किशोर जोशी

आज आप किसी नौजवान से अखबार में छपी खबर के बारे में अगर चर्चा करना चाहेंगे तो उसे अच्छा नहीं लगेगा. उसे इसलिए अच्छा नहीं लगेगा क्योंकि अखबारी खबर पुरानी है, बासी है. उसे खबर चाहिए हमेशा तरोताजा यानि फ्रेश. उसे किसी खबर के लिए 24 घंटे इंतजार करना अच्छा नहीं लगता. ठीक ऐसी ही मनोदशा करीब करीब घर में सभी की होगयी है. सभी को चाहिए तरोताजा खबर , फ्रेश खबर.खबर जानने के लिए धीरज, इंतजार और लंबा समय किसी के पास नहीं है आज.

उल्लेखनीय है कि 10 साल पहले लंदन स्थित दैनिक “गार्जियन” अंग्रेजी अखबार के संपादक का भारत आगमन हुआ था 2 दिन के लिए. वे पहले दिन मुंबई में थे, दूसरे दिन उनका पडाव था दिल्ली. दोनों ही दिन वे अपने पत्रकार मित्रों के कार्यक्रम में ब्यस्त थे. वे पत्रकार मित्रों के निमंत्रण पर ही भारत 2 दिनों के दौरे पर आये थे. लंदन से विशिष्ट पत्रकार, अखबार के संपादक आयें और मीडिया पर चर्चा ही न हो , ऐसा होही नहीं सकता. अतः मीडिया पर , उसके वर्तमान स्वरूप पर , भविष्य पर चर्चा खुलकर हुई भारतीय पत्रकारों और उनके पत्रकार विदेशी मित्र के बीच.चर्चा में भाग लेते हुए मुंबई और दिल्ली दोनों ही जगह गार्जियन अखबार संपादक महोदय ने साफ साफ शब्दों मे भारतीय पत्रकार मित्रों को कहा कि पूरे पश्चिमी जगत से दैनिक अखबार या तो बंद होगये हैं या बंद होने वाले हैं.

आलम यह है कि अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी जैसे उन्नत देशों में दैनिक अखबार करीब बंद ही होगये हैं. उनकी जगह डिजिटल मीडिया ने लेलीहै. अतः आप भी जितनी जल्दी डिजिटल मीडिया में आओगे, उतना आपको फायदा है. उनकी कही बात आज सौप्रतिशत सही साबित होती दिख रही है.आज भारत में अखबार गुजरे जमाने के साथ जुडे हुए हैं. आज की खबरें सारी दूसरे दिन छपती है. पुरानी खबरें पढने की किसी की इच्छा नहीं होती.

इसलिए अखबारों के नियमित पाठक दिन प्रतिदिन घटते जा रहे हैं. सर्कुलेशन कम होती जा रही है. लोगों की रुचि और समय अखबार पढने के लिए किसी के पास नहीं है.

अब मैं अखबारों के बारे में आज कल की बातें कर रहा हूँ. आजकल कोरोना काल में देश भर में करीब सारे अखबार भीषण संकट काल से गुजर रहे हैं. यह आजादी के बाद अखबारों पर आया सबसे बडा संकट काल है. पूरे देश भर में कोरोना के चलते लोग अखबार पढना आधे से ज्यादा पाठक बंद कर दिये हैं तीन महीने होने को आये. ऐसे में अखबार वाले इस संकट से बचने के लिए अखबार की पृष्ठ संख्या घटा दिये, कागज की क्वालिटी खराब कर दिये, कुछेक ने पैसे बढा दिये, इत्यादि.

इधर भुवनेश्वर से प्रकाशित कुछ अखबारों ने स्टाफ सैलरी आधी कर दी है. इसके बावजूद घाटे की भरपाई उनकी नहीं हो पारही है. अतः कई बंद होने के कगार पर हैं, इनमें अंग्रेजी और हिंदी अखबारों का नाम प्रमुखता से मीडिया सर्कल में घूम रहा है.

डिजिटल मीडिया हैंडि है. सहजता से सब जगह, सब समय लोगों के पास उपलब्ध है.अतः टिभि के भी मुकाबले भारत में डिजिटल मीडिया का भविष्य उज्जवल दिखाई दे रहा है ः भगवान कृष्ण ने भी गीता संदेश में कहा है कि कल जो किसी का था,वो आज तेरा है,कल किसी और का होगा.

 

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