अंतर्राष्ट्रीय माँ दिवस के उपलक्ष्य में श्री पुरुषोत्तम अग्रवाल की कविता

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  • करुणामय रुप प्रकट करनेकी
    ईश्वर के मन में आई
    तब माँ की मूरत बनकर के
    ईस धरा पटल पर है आई ।।
  • जब प्रेम,कृपा,करुणा मिलते
    तब माँ की मूरत बनती है
    कभी खत्म नहीं होनेवाली
    ममता हृदय में रहती है।।
  • जब चैन मुझे ना पड़ता था
    और शाम मुझे ना भाती थी
    उसकी मीठी लोरी सुनकर
    मुझे नींद सुहानी आती थी।।
  • माँ के आँचल में सारे सुख
    और गोद स्वर्ग सी लगती थी
    उसकी प्यारी प्यारी पलकें
    पीपल की छाया लगती थी।।
  • मैं उसके दिल का टुकड़ा था
    वो आँख की मेरी ज्योति थी
    मैं हँसता था वो हँसती थी
    मैं रोता तो वो रोती थी।।
  • जब छोटी सी भी एक चोट
    मे रे तन को लग जाती थी
    आँखों में पानी होता था
    वो पीड़ा से भर जाती थी।।
  • मैं स्कुल जब चल जाता था
    मेरी राह निहारा करती थी
    और प्यार भरे हाथों से मुझको
    खूब खिलाया करती थी।।
  • माँ के पावन चरणों में
    सारे मंदिर और देवालय है
    मस्जिद,गिरिजाघर,गुरुद्वारा
    सब तीरथ और शिवालय है।।
  • माँ के चरणों में फुलवारी
    माँ के चरणों में जन्नत है
    माँ के चरणों की सेवा से
    सब होती पूरी मन्नत है।।
  • चँदन सी शीतलता मिलती
    केवल माँ के ही आँचल में
    जिस घर में माँ खुश रहती है
    तो कल्प वृक्ष है आँगन में।।
  • ऐसी सुंदर,कोमल माँ से
    जो बेटा करता प्यार नहीं
    उसे माँ दुर्गा के मंदिर में
    है जाने का अधिकार नहीं।।
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