9 जुन,1978 को कटक के बाराबाटी स्टेडियम में ओडिशा प्रदेश कांग्रेस कार्यकर्ताओं का एक सम्मेलन था.इस सम्मेलन में पूरे ओडिशा से हजारों कांग्रेस के कार्यकर्ता ,नेता आये हुए थे. इस सम्मेलन में इंदिरा गांधी बतौर मुख्य अतिथि के तौर पर निमंत्रित थी.
इंदिरा गांधी उस समय प्रधानमंत्री पद पर नहीं थी. उनके आगमन के लिए प्रदेश कांग्रेस सभापति जानकी वल्लभ पटनायक काफी ब्यस्त रहते थे .ओडिशा भर में कार्यकर्ताओं से वे संपर्क महीना भर पहले से इंदिरा के प्रोग्राम को सफलता देने के लिए चला रखे थे.
मुझे भोजन विभाग का जिम्मा दिया गया था.इसमें मालगोदाम से किराना सामान खरीदना शामिल था. मैंने मित्र किशन शास्त्री की मदद से मालगोदाम से सारी खरीदारी की.
हजारों छोटे बडे नेताओं के भोजन की ब्यवस्था संभालना
बडा मुश्किल काम था. फिर भी जानकी वल्लभ पटनायक के आदेश पर और दल के दूसरे कार्यकर्ताओं के सहयोग से मैंने इसे सफलतापूर्वक संभाला.
इंदिरा गांधी दिन के बारह बजे आसपास बाराबाटी स्टेडियम पहुंची. इंदिरा के स्टेडियम में आने के पहले ही हम लोगों के पास खबर आगयी थी कि इंदिरा
पर काठजोडी नदी पुल पार करते ही राजनीतिक विरोधियों द्वारा जानलेवा हमला हुआ है. इंदिरा
सीधे भुवनेश्वर हवाई अड्डे से कटक आरही थी. कटक के प्रवेश पर काठजोडी पुल से गाडी नीचे
उतरते ही ,उन पर लाठियों से पचास साठ विरोधियों ने हमला बोला. गाडी के आगे पीछे के शीशे चकनाचूर होगये थे. वहीं का़ंग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी विरोधियों को उचित जवाब दिया.
इंदिरा गांधी करीब बीस मिनट वहाँ झमेले में फँसी रही सडक पर. हमें थोडी देर में स्टेडियम में इंदिरा के आने की सूचना मिली. कार्यकर्ताओं में इंदिरा को नजदीक से देखने की जिज्ञासा हुई.
मैं भी पांच मिनट के लिए भोजन कक्ष का जिम्मा अन्य सहयोगियों को देकर स्टेडियम मैदान में इंदिरा को नजदीक से देखने चला गया.
मैंने देखा इंदिरा गंभीर मुद्रा में अकेले स्टेडियम में कोने में खडी थी. इंदिरा गांधी हल्की लाल रंग की साडी पहनी हुई थी. सारे बदन पर छोटे छोटे शीशे के टुकडे पडे हुए थे. ये टुकडे कार के टूटे शीशों के थे, जिसे विरोधियों ने लाठियों
के प्रहार से तोड दिये थे. मैंने देखा कांग्रेस के सारे बडे नेता
मंच के पास प्रोग्राम को ब्यवस्थित कर रहे थे.
इसलिए इंदिरा अकेले थोडी देर के लिए मंच से थोडी दूर पर खडी थी. मैं जब इंदिरा को देखा तो 5 मिनट तक एकटक देखता ही रहा. वो बडे शांत भाव से गंभीर मुद्रा में खडी थी.
इतने में ही माइक से इंदिरा को निमंत्रण मिला मंच पर आने के लिए .बडे नेता आये उन्हें लेने के
लिए. करीब पांच सात मिनट मैंने इंदिरा को तीन चार फिट की दूरी से देखा. उस समय उनके पास कोई भी नेता नहीं थे.
फिर मैं मेरी ड्यूटी में चला आया भोजन कक्ष को संभालने. लौटते समय मेरी नजर इंदिरा की गाडी
पर पडी.मैंने पाया काफी क्षत विक्षत हो गयी थी गाडी.